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Wednesday, June 22, 2011

गोविन्द दास नगरिया


तुम्हारी याद तब आती 

घुमड़ते मेघ जब नभ में 
धरा पर बरस जाने को 
चमकती दामिनी सुन्दर 
मेघ का मन लुभाने को 
उसी क्षण बूँद को पीने 
पपीही बोल जब जाती 
तुम्हारी याद तब आती 

उतर कर चांदनी भू पर 
छबीला नृत्य जब करती 
विकल हो कर दीवानी सी
चन्द्र को अंक में  भरती 
उसी क्षण गुदगुदाती जब 
पवन हर फूल औ' पाती 
तुम्हारी याद तब आती 

बसंत के आगमन पर जब 
प्रकृती श्रृंगार  कर उठती 
खिली हर-हर कली में तब 
मिलन की साध भर उठती 
उसी क्षण आम्र तरु पर जब 
कुयलिया गीत नव गाती 
तुम्हारी याद तब आती 
(गोविन्द दास नगरिया परिधि-६ )
 

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