तुम्हारी याद तब आती
घुमड़ते मेघ जब नभ में
धरा पर बरस जाने को
चमकती दामिनी सुन्दर
मेघ का मन लुभाने को
उसी क्षण बूँद को पीने
पपीही बोल जब जाती
तुम्हारी याद तब आती
उतर कर चांदनी भू पर
छबीला नृत्य जब करती
विकल हो कर दीवानी सी
चन्द्र को अंक में भरती
उसी क्षण गुदगुदाती जब
पवन हर फूल औ' पाती
तुम्हारी याद तब आती
बसंत के आगमन पर जब
प्रकृती श्रृंगार कर उठती
खिली हर-हर कली में तब
मिलन की साध भर उठती
उसी क्षण आम्र तरु पर जब
कुयलिया गीत नव गाती
तुम्हारी याद तब आती
(गोविन्द दास नगरिया परिधि-६ )
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