सागर- नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था हिन्दी-उर्दू मजलिस की 295 वीं गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में दिनांक ०१ जून २०११ को सम्पन्न हुई. इस बहुआयामी गोष्ठी की अध्यक्षता श्री सेठ मोतीलाल जी जैन ने की एवं संचालन श्री ऋषभ समैया ‘जलज’ ने किया .
गोष्ठी की शुरुआत करते हुए क्रान्ति जबलपुरी ने ग़ज़ल का शेर पढ़ा -
तेरी नज़रें, तेरा अंदाज़, वो अहसास संदल सा / मैं देखूं ख्वाब जो तेरा, मेरा बिस्तर महकता है//
डॉ.अनिल जैन ‘अनिल’ ने गज़ल पढते हुए कहा-
हुआ क्या है हाथों की तासीर को / ये उठते नहीं हैं दुआ के लिए //
राम आसरे पाण्डे ने रचना पाठ करते हुए कहा—
अपना घर मुझको बेगाना लगता है/गाँव मेरा मुझको अनजाना लगता है.//
श्रीमती निरंजना जैन ने व्यंग्य रचनाओं के पाठ के पूर्व दोहा पढते हुए कहा-
पगलाया मौसम हुआ,छिन-छिन बदले रूप/ कहीं चमकतीं बिजलियाँ, कहीं कडकती धूप//
संचालन कर रहे ऋषभ समैया ‘जलज’ ने कहा-
माँ जो रूठ जायेगी, फिर उसे मना लेंगे/और उसे मनाने में देर कितनी लगती है//
वरिष्ट कवि निर्मल चंद ‘निर्मल’ ने दोहा पढ़ा-
उम्र चली आकाश को, धरती पकड़े पैर/ ऐसे में बोलो कहाँ ‘निर्मल’ अपनी खैर//
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे श्रीमान सेठ मोतीलाल जी जैन ने कहा कि मैं आज की गोष्ठी में पधारे सभी कवियों से अभिभूत होकर जा रहा हूँ.
देर रात तक चली इस गोष्ठी में श्री नेमीचन्द्र जैन ‘विनम्र’, विनोद अनुरागी, अक्षय जैन ने अपनी रचनाओं का वाचन किया. सुधी श्रोताओं में श्री योगेश चंद्र दीवानी, श्रीमती संध्या ,श्रीमती मधु जैन, आस्था जैन एवं सुभाष दिवाकर उपस्थित थे .
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