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Sunday, February 27, 2011

तबादला -निरंजना जैन





कहानी 
तबादला
                            निरंजना जैन  
      अपने तबादले की सूचना मिलते ही विद्युत मंडल का चपरासी बद्री प्रसाद जड़ सा हो गया | दफ्तर के इन्चार्ज खन्ना साहब के आते ही वह निढाल सा उनके केबिन में पहुँच कर अपना सर झुका कर खड़ा हो गया | उसकी हालत देख कर खन्ना साहब बोले “क्या बात है बद्री ? क्या बुखार-उखार आ गया है तुम्हें ?”
      बद्री दींन-हीन स्वर में बोला “नईं साब ! सुना है मेरा तबादला हो गया है |”
      अब सरकारी नौकरी में तो तबादले लगे ही रहते हैं | ” खन्ना साहब ने निस्पृह भाव से जवाब दिया |
      “साब ! ये बात तो मैं जानता हूँ | पर इस  समय मैं तबादले पर जाने की हालत मैं नहीं हूँ |”फिर एक लंबी सी साँस खींचकर वह  पुनः गिड़गिड़ाया – “आप कुछ भी करिये साब ! मेरा तबादला रुकवा दीजिए |”
      “सरकारी नौकरी में रहोगे तो तबादले होंगे ही | तबादलों से इतना घबराते हो तो नौकरी क्यों की ? कोई और काम-धंधा करते |” खन्ना साहब ने रूखे स्वर में जवाब दिया |
      “साब ! मैं तबाद्लों से नईं डरता | पर अब मैं कहीं और जाने की हालत में नहीं हूँ | अठारा साल  हो गए मुझे नौकरी करते | तब से अब तक पांच जगा तबादला हो चुका है | पर मैंने कभी हील-हुज्जत नहीं की | अठारा साल पेले जब साढ़े तीन सौ रुपे की नौकरी मिली तो मुझे लगा मेरा मैट्रिक पढ़ना सफल हो गया | नौकरी मिली थी तो मैं भोत खुश था | वैसे तो गाँव में हमारी थोड़ी सी जिमीन भी रही | पर मेरा  मन उस टेम नौकरी करना चाहता था | अम्मा बापू ने भी जोर नईं डाला खेती करने के लिए | क्योंकि उतना काम तो वह दोनों ही सम्हाल लेते थे | फिर मेरा छोटा भाई भी था उनके सहारे के लिए | नौकरी मिलते ही गाँव में मेरी और अम्माँ- बापू सबकी इज्जत बढ़ गईं | फिर मेरा ब्याह भी हो गया इस नौकरी में हम मियां – बीबी जहाँ भी रहे , हमें कोई अड़चन नहीं हुई | क्योंकि अनाज अम्माँ – बापू भिजवा देते और बाकी गुजर के लिए तनख्वाह थी ही | पर साब ! अब मेरा यहाँ से कहीं और जगा जाना मुश्किल है | दो बरस पेले बापू गुजर गए ते | इनके गम में अम्माँ भी भोत कमजोर हो गयीं हैं | खेती – बाड़ी का काम अब अकेले उनसे नईं समरता है | साल भर से छोटे को  भी बुखार आ रहा था | उसका इलाज करवाते रहे | पर बुखार ठीक नहीं हुआ | अभी कुछ महीने पहले पता चला की उसे टी० बी० है | सो उसकी दवा-दारू में भी ढील नई कर सकते हैं | गाँव यहाँ से बीसेक मील दूर है| छुट्टी के रोज वहाँ जाकर थोड़ा भोत काम निपटा आता हूँ | साब ! आप तो जानते हैं की पिछले बरस बरसात में रपटने से मेरे हाथ की हड्डी उतर गयी थी | वजन-अजन उठाने में भरी दिक्कत होती है | मेरी घरवाली को लकवा मार गया | तब से मैं भोत परेसान हूँ | वैद , हकीम डाकधर सबको जंचवाया , पर किसी के इलाज से कोई फरक नईं पड़ा | उसकी देखरेख , मालिस , दवा-दारू करना पड़ती ,सो अलग बात | ऊपर से रोटी – पानी , झाड़ू , बासन ,कपड़ा धोने का बोझा भी सर पर आ गया है | डूटी तो करनी पड़ेगी साब ! नईं तो खायेंगे क्या ? अधमरा तो मैं पेले से था , अब इस तबादले ने तो मेरी जान ही निकल दी है | अपाहिज घर वाली , कमजोर बूढ़ी अम्माँ , बीमार भाई और अपने पुरखों की हाथ भर जमीन , इन सब को बेसहारा छोड़कर कैसे जाऊं साब ?” कहते हुए रो पड़ा बद्री |
      फिर नाक सुडकते हुए बोला – “अठारा बरस तो गुजर ही गए हैं इस नौकरी में किसी तरह दो बरस और कट जाएँ तो पूर्व – सेवा मुक्ति लेके अपने घर चला जाऊँगा | फिर भईं पर  रहूँगा | बस किसी तरह  दो बरस और कटवा दीजिए साब ! मैं जिनगी भर आपका अहसान मानूँगा | “
      बद्री के दुखद हालातों से पसीज कर खन्ना साहब ने उसे ढाढस बंधाया -  “देखो बद्री ! मैं मानता हूँ की तुम बहुत तकलीफ में हो | पर तुम्हारा तबादला रोकना मेरे हाथ में नहीं है | हाँ ! मैं इतना अवश्य कर सकता हूँ की तुम्हारी प्रोब्लम हेडक्वाटर रिफर कर दूँगा | अगर वहाँ से आदेश आया तो ही तुम्हारा तबादला रुकेगा | पर ... कम से कम  दो – चार दिन तो लग ही जायेंगे | तुम ऐसा करो , चार दिन बाद आकर मुझसे मिलो |ठीक है ? ”
            एक हाथ से खन्ना साहब के पैर छू और दूसरे हाथ से अपनी आँखों में भर आये आँसू को पोंछ कर , बद्री ने तसल्ली से सर हिलाया और – “अच्छा साब ! ”कह कर चला गया |
      चौथे दिन खन्ना साहब के आने के एक घंटे पूर्व ही बद्री उनके केबिन के चक्कर काटने लगा | उनके आते ही उन्हें सलाम करके विनीत स्वर में बोला – “बात हो गई साब ? ”
हाँ ! बात तो मैंने कर ली है पर उनका कहना है की तुम्हारे स्थान पर आने वाले की भी तुम्हारी तरह कुछ परेशानियां हैं | उसने स्वयं ही तबादले पर यहाँ आने के लिए आवेदन दिया था | इस सप्ताह के अंत तक तुम दोनों को  अपनी-अपनी ड्यूटी ज्वाइन करना है | अब तो बस एक ही रास्ता बचा है की यहाँ आने वाले प्यून नंदू  को अपनी सारी परेशानी तुम स्वयं जाकर या पत्र द्वारा बतला दो | यदि वह मान गया तो ही तुम्हारा तबादला रुकना संभव है | वर्ना तुम्हें जाना ही पड़ेगा| उसका पता मैं दे देता हूँ |
      बद्री केबिन की दीवार से सर टिका कर वहीं बैठ गया | फिर बोला – “अपनी बीमार घरवाली को छोड़ कर वहाँ तक जाना तो मुश्किल है | मुझे तो चक्कर से आ रय हैं | चिट्ठी आप अपने हिसाब से लिख दीजिए साब ! ” उसने चिरौरी की |
      खन्ना साहब के लिखे  पत्र को दफ्तर के बाहर लगे डॉक के डिब्बे में छोड़  , बद्री लडखडाते कदमों से घर पहुँचा और बीमार पत्नी के पलंग के पास पड़ी टीन की  इकलौती कुर्सी पर सर पकड़ कर धम्म से बैठ गया | लकवा ग्रस्त चम्पा ने पति की जब यह हालत देखी तो बहुत कोशिश के बाद , इशारा करते हुए काँपती जुबान से लड़खड़ाती आवाज़ में बोली – “क ..क ..क्या हो... गया है तुम्हें ? ”
      चम्पा के इशारे के लिए फैले हाथ को तसल्ली देने वाले अंदाज़ में हौले से दबा कर बद्री बोला –“कुछ नईं , बस जरा ताप सा लग रहा है | सर भी भन्ना रहा है |”
      सुनकर लाचार चम्पा की आँखों में चिन्ता के भाव बनने लगे | उसके मुँह से मुश्किल से गुन्गवाती आवाज़ निकली –“द...द...द...दवाई ले लो | ”
      “तुम मेरी चिन्ता मत करो | ले लूँगा | लो... पानी पियो | ”कहकर बद्री ने चम्मच से चम्पा के मुँह में पानी डाला और पुट्ठे के डिब्बे में रखी दवाइयों के ढेर से एक गोली निकली पानी के साथ गटक ली |
      रात हुई तो जैसे-तैसे थोड़ी सी खिचड़ी पका कर चम्पा को खिलाई , फिर उसे दवा देकर सुला दिया | पर खुद से चिन्ता के मारे एक कौर न गुटका गया | पूरी रात छत घूरते सोचता रहा ,यदि नंदू न माना तो... | एक तो चिन्ता ऊपर से रतजगा | एक ही रात में निचुड सा गया बद्री | सुबह उठकर एक बेजान यंत्र की तरह उसने अपने तथा चम्पा के दैनिक कर्म निपटाए |उसे खिलाया-पिलाया और आप मुँह जुठारे बिना ही ज़मीन पर पड़े बिस्तर पर फिर मुर्दे सा पड़ गया|
      जैसे-तैसे एक दिन गुज़रा | दूसरा दिन भी पहाड़ सा कटा | तीसरे दिनभी उसकी भूख पर चिन्ता हावी रही | उसकी आँखें गड्ढे में घुस गईं | गाल पाचक कर हड्डियां उभर आईं और गेंहूँआ रँग स्याह पड़ गया | चिट्ठी छोड़े आज चौथा दिन था | अभी दो दिन बाकी हैं | इसी उम्मीद ने उसके कृशकाय  कमजोर शरीर में चम्पा को खाना- पानी देने लायक ताकत शेष रखी थी | राम – राम करके छठवाँ दिन भी आ गया | पूरे दिन वह बुझी – बुझी आँखों से दरवाजे पर टकटकी लगाये ज़वाब लेने वाले की राह निहारते हुए सोचने लगा –“कल डूटी पर जाना है | इस जड्ड शरीर के साथ अब दफ्तर तो दूर , दरवाज़े तक घिसटना भी भारी लग रहा है |अब  मैं क्या करूँ ?”
      सोचते – सोचते बद्री बेसुध हो गया |
उस दिन बीमार चम्पा को दवा तो दूर खाना – पीना तक नहीं मिला | वह निरीह , लाचार , अपने पलंग के पास पड़े पति की हालत देख – देख कर हलाकान हुई जा रही थी | लेकिन मजबूर थी | क्या करती ? उसका हलक भी प्यास के मारे सूख कर चिपक गया था | लेकिन पति की धौंकनी की तरह चलती साँस को देख कर वह सब भूल गई | अचानक ही बद्री को खाँसी का बहुत तेज दौरा उठा | वह अधबैठा होकर दोनों हाथों से अपनी छाती मसलते हुए छटपटाने लगा | उसकी आँखें बाहर को उभर आईं | पति की यह हालत देख चम्पा से न रहा गया | उसने पूरी ताक़त लगाकर बिस्तर से उठने की कोशिश की | ताकि उसे दो घूँट पानी पिला सके | तभी बद्री के मुँह से फेन निकलने लगा , और वह फिर से बिस्तर पर  गिर गया | चम्पा भी उठाने की कोशिश में पलंग से लुढक कर बद्री के पैरों के पास जा गिरी और फटी – फटी आँखों से पति को देखने लगी | दो  मिनिट में ही उसकी आँखों की पुतलियाँ स्थिर हो गईं |
      घटना के दो घंटे बाद दफ्तर का कर्मचारी छोटेलाल बद्री को यह खुशखबरी देने आया कि उसका तबादला रुक गया है | पर घर के लटके हुए दरवाजे को खोलते ही सामने का दृश्य देखकर उसकी रूह फ़ना हो गई | उसने फ़ौरन ही दफ्तर पहुँचकर खन्ना साहब की टेबिल पर बद्री का स्थगन आदेश वापस रखते हुए कहा – “साहब ! बद्री को अब कागज के इस टुकड़े की कोई ज़रूरत नहीं है | वह इस दुनिया से सेवा मुक्त होकर , अपनी घरवाली सहित दूसरी दुनिया के तबादले पर जा चुका है |”
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पोस्ट आफिस के पास बड़ा बाज़ार , सागर

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