हिन्दी-उर्दू मजलिस का मुखपत्र

जून माह के अंत तक प्राप्त चयनित रचनाएं पत्रिका 'परिधि' में प्रकाशित की जाती हैं. लेखक को एक लेखकीय प्रति नि:शुल्क प्रेषित की जाती है.
मंगल फॉण्ट में टाइप रचनाएं (चयनित) ब्लॉग पर भी प्रकाशित होंगी. ब्लॉग पर प्रकाशनार्थ रचना कभी भी भेजी जा सकती है
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Tuesday, July 19, 2011

वृन्दावन राय 'सरल'

हमारे ज़र्फ़ का ये इम्तेहान होना है
ज़मीं के साथ हमें आसमान होना है
खुदा ने जो भी दिया उसका  एहतराम करो
अगर सुकून से हर रात तुम को सोना है
वफ़ा, ख़ुलूस से पहले करो ज़मीं ताज़ा
अगर चमन में जो अम्नो अमान बोना है 
सभी हैं शाख के पत्ते यहाँ हरे-पीले
समय के साथ हवाओं में जिनको खोना है
तमाम ज़ख़्म जो बख्शे हैं हमको दुनिया ने
हमें ये दाग़ फ़क़त आँसुओं से धोना है
दह्र से नाम अँधेरे का मिटाने को 'सरल'
हमें चिराग़ नहीं, आफ़ताब होना है  

वृन्दावन राय 'सरल'


क्यों रहें निर्भर किसी ज़रदार पर
सर  झुकाएं क्यों किसी के द्वार पर
चाँद पर अब घर बनाए आदमी
फूल सहरा में खिलाये आदमी
कर यकीं अपने हुनर की धार पर
सर झुकाएं...........
मंज़िलों के पा सकें न वो निशाँ
जो चलें बैसाखियाँ लेकर यहाँ
मत बना छत रेत की दीवार पर
सर झुकाएं......
खो गई  इंसान की इंसानियत
हो गई बारूद जैसी ज़हनियत
जी रही दुनिया खड़ी तलवार पर
सर झुकाएं...........
कौन किसका है सगा इस दौर में
दे रहे अपने दग़ा इस दौर में
धूल छल की चढ़ गई व्यवहार पर
सर झुकाएं......
(परिधि-1)




रचना पाठ गोष्ठी दिनांक १७/०७/२०११

सागर- नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'हिंदी- उर्दू मजलिस' की २९८ वीं रचना पाठ गोष्ठी दिनांक १७/०७/२०११ को संस्था  के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में संपन्न हुई. गोष्ठी की अध्यक्षता श्रीमान लक्ष्मी चन्द जैन ने की तथा संचालन श्री विनोद अनुरागी ने किया.
विनोद 'अनुरागी' ने रचना पढ़ी- ढोल बजेंगे,उठेगी मिट्टी, हाहाकार मचेगा घर में/ बंटवारा भी घर में होगा, भूल जायेंगे सब कुछ पल में//
वृन्दावन 'सरल' ने  दोहा  पढ़ते हुए कहा- पानी-पानी हो गया, उस बस्ती में आज/ बूँद-बूँद जल के लिए, कल था जो मुहताज//
डा० अनिल जैन 'अनिल' ने गीत पढ़ते हुए कहा- सांसों के तारों की धुन पर, जीवन गीत सुनाता हूँ/ मृत्यु का आलिंगन करने, पल-पल बढ़ता जाता हूँ//
श्रीमती निरंजना जैन ने रचना पढ़ी- जीवन की बगिया को हमने खिलते और उजड़ते  देखा/ सपनों के महलों को हमने टूट-टूट कर गिरते देखा//
वरिष्ठ कवि श्री निर्मल चन्द 'निर्मल' ने रचना पढ़ते हुए कहा- लाख तू कंकर-पत्थर जोड़/गिरेगी  मिट्टी की दीवार/है परीक्षण तेरे अविनय का/ सपनों में सपने देखता क्यों//
श्री सुभाष दिवाकर एडव्होकेट   ने कहा की इस गोष्ठी में कविता का स्तर बहुत ही उच्च है. ये रचनाएं प्रकाशन होने की मांग रखती हैं.
श्रीमान मोतीलाल जैन'दाऊ जी' ने कहा - 'संस्था के उपाध्यक्ष डा० अनिल जैन  की भाभी  श्री मुन्नी देवी जैन  का  कम उम्र में निधन हो जाने से आज मन द्रवित है . इसके बावजूद आज की गोष्ठी भावपूर्ण कविताओं के साथ संपन्न हुई. जीवन की सहजता, सरसता, नीरसता, सजगता को समर्पित आज की रचनाएं मन को विह्वल कर गईं .
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे श्री लक्ष्मी चन्द जैन  एडव्होकेट ने कहा आज की रचनाएं उत्कृष्ट शैली की थीं.
गोष्ठी के अंत में श्रीमती मुन्नी देवी जैन को दो मिनिट मौन रख  कर श्रृद्धांजलि अर्पित की गई.
                                                                                                              सचिव- निरंजना जैन 
  

Sunday, July 3, 2011

दिनांक ०१/जुलाई २०११


सागर- नगर की साहित्यिक संस्था 'हिंदी- उर्दू मजलिस' की 297 वीं गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में संपन्न हुई . गोष्ठी की अध्यक्षता श्री लक्ष्मी चन्द जैन ने की एवं सञ्चालन श्री पूरन सिह राजपूत ने किया.

राम आसरे पाण्डे ने रचना पाठ करते हुए कहा- वो हमको रौशनी देगा, बताओ मानलें कैसे? की जिसको देखने के वास्ते दीपक जलाना है //
पूरन सिंह राजपूत ने शेर पढ़ा- कह दिया तो मान जाओगे बुरा/ तुम हमारा मुंह न खुलवाया करो//
डॉ0 अनिल जैन ने ग़ज़ल का मतला पढ़ते हुए कहा- सुब्ह को चलती हवा की ताज़गी हैं लडकियाँ / चहचहाती बुलबुलों के गीत सी है लडकियाँ//
ऋषभ समैया 'जलज' ने रचना पढी- अपनेपन की हवा रौशनी, अंगनाई सा घर/ पूँछ , परख, थिरकन रिश्तों की पहुनाई सा घर //
श्री मोती लाल जैन ने प्रकाश काम्बले की कविता 'घर मात्र दीवारों से नहीं बनते' का पाठ किया .