हिन्दी-उर्दू मजलिस की पाक्षिक गोष्ठी संपन्न
सागर- नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था हिन्दी-उर्दू मजलिस की २६८ वीं गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में सम्पन्न हुई | इस बहुआयामी गोष्ठी की अध्यक्षता श्री लक्ष्मीचंद जैन एडवोकेट ने की तथा संचालन अक्षय जैन ने किया |
गोष्ठी की शुरूआत में विनोद जैन ‘अनुरागी’ ने सदगुणों के प्रभाव की चर्चा करते कहा-
‘भला भलाई से होता है , बुरा बुराई से होता है |
करो भलाई गैरों की तो , अपना भला सदा होता है ||
डॉ० अनिल जैन अनिल ने अपने व्यंग्य ‘ग्राम-गमन’ को पढ़ने के बाद गज़ल के शेर में कहा –
‘कुछ न कह परिन्दे से , ये तो उसकी फ़ितरत है |
क़ैद में भी चाहत है , गीत गुनगुनाने की|’
श्रीमती निरंजना जैन ने अपने कुछ बालोपयोगी शिक्षाप्रद गीतों का वाचन किया |
दिलशाद सागरी ने सहयोग और हौसले की बात करते हुए शेर कहा –
‘हमारे साथ में तलवार उठाने के लिए
तुम हो तैयार तो , गद्दार के दिन थोड़े हैं |’
अक्षय जैन ने अपने देहात प्रेम को प्रदर्शित करते हुए रचना पढ़ी –
‘देहात चलो री सखी, हम साथ रहेंगे
इसमें बसा जहाँ है , हम तुम भी बसेंगे |’
जी० आर० साक्षी ने बेटी का बिदाई गीत पढ़ते हुए कहा –
‘पढ़- लिखकर तुम बड़ी हुईं और सौपीं गयीं वर को
जाओ सम्हालो अपना आँगन , स्वर्ग बनाओ घर को
किन्तु दहेज का दानव तुम को , यदि सताए बेटी
तो तुम निज अधिकार सम्हालो , त्यागो उस घर-वर को |’
क्रांति जबलपुरी ने इंसानियत की चिंता करते हुए शेर कहा –
‘एक नादान को , नादान बना रहने दो
यानी इंसान को इंसान बना रहने दो |’
इंदौर से पधारे अतिथि कवि राज केशरवानी ने अफ़सरों पर व्यंग्य करते हुए रचना पढ़ी –
‘लायसेंस / परमिट या कोई परमीशन
केवल दस-दस खोखे में दे दें /आओ अफसर-अफ़सर खेलें’|
सेठ मोतीलाल जी ‘दाऊ’ ने सब को आईना दिखाती रचना में कहा-
‘आईना देख कर वो कुछ इस क़दर भड़के
आईना दिखाने वालों को उलटे पैर भागना पड़ा |’
गोष्ठी के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीचंद जैन ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा –
‘सभी साहित्यकारों ने मन को छूने वाली अपनी रचनाओं से माहौल को आंदोलित
कर दिया है | गोष्ठी में श्रोता वृन्दों में अमिष साक्षी, प्रमोद अग्रवाल, विक्रांत जैन
की उपस्थिति विशेष रही |
सचिव
१७-०४-२०१०