सागर- नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था हिन्दी-उर्दू मजलिस की २९६ वीं गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में दिनांक १७ जून २०११ को सम्पन्न हुई | इस बहुआयामी गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ट कवि श्री निर्मल चंद ‘निर्मल’ ने की एवं संचालन श्री डॉ अनिल जैन ‘अनिल’ ने किया .
गोष्ठी की शुरूआत करते हुए क्रान्ति जबलपुरी ने गज़ल का शेर पढ़ा-मेरे माँ- बाप ने मेरी लहद पर फूल बरसाए / वतन के नाम जब लड़कर शहादत मिल गई मुझको //
डॉ.अनिल जैन ‘अनिल’ ने ‘हम भ्रष्टन के’व्यंग्य रचना पढते हुए कहा- भ्रष्टाचार/ हमें स्वीकार्य है / सदियों से स्वीकार्य है / जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी / वह / उतने बड़े सम्मान का अधिकारी
राम आसरे पाण्डे ने रचना पाठ करते हुए कहा—अभी सुनते जाओ, कथा और भी है/ पढ़ा है अभी, लिखा और भी है.
श्रीमती निरंजना जैन ने चट्टान, मेला एवं सत्य-सूली रचना का पाठ करते हुए कहा- सत्य सूली पर टंगा है और हम बौने हुए हैं/ झूठ के जंगल घने हैं और हम छौने हुए हैं/ बंद हैं सब द्वार घर के, बंद हैं सब खिड़कियाँ/ रौशनी आये कहाँ से, हम तो बस कोने हुए हैं //
विनोद जैन ‘अनुरागी’ ने रचना पढ़ी- लिखो क्षमा की आज इबारत, गाओ कंठ से मीठे गीत/ मन का तमस हटालो पूरा, बन जाएँ सब अपने मीत//
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ट कवि निर्मल चंद ‘निर्मल’ ने रचना पढ़ी –जो दिखी तस्वीर हमने देख ली/ आपकी तदबीर हमने देख ली/ है अचल बनकर विदेशों में पड़ी./ देश की जागीर हमने देख ली//
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