हिन्दी-उर्दू मजलिस का मुखपत्र

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Sunday, October 6, 2013

गांधी जयंती की पूर्व संध्या रचना-पाठ गोष्ठी संपन्न



गांधी जयन्ती की पूर्व संध्या में हिन्दी-उर्दू मजलिस की रचना-पाठ गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में संपन्न हुई. गोष्ठी की अध्यक्षता बीड़ी उद्योगपति डॉ. जीवनलाल ने की और संचालन अनिल जैन ‘अनिल’ ने किया. गोष्ठी के प्रारंभ में वरिष्ठ कवि दादा निर्मल चन्द ‘निर्मल’ ने गाँधी जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित किया एवं डॉ. जीवनलाल जी जैन ने चित्र पर पुष्पहार अर्पित किया. तत्पश्चात सभी उपस्थित साहित्यकारों ने गांधी जी के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की.
      संस्था के संरक्षक डॉ. जीवनलाल जी ने गांधी जी  की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गांधी आज भी प्रासांगिक हैं और हमेशा प्रासांगिक रहेगे. वरिष्ठ कवि निर्मल चन्द ‘निर्मल ने गांधी  जी के जीवन से महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया.
      युवा कवि डॉ. अवधेश प्रताप सिंह ने ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा- अब हमें बेचैनियों में कुछ रियायत चाहिए / क़ैद से दो चार पल को अब ज़मानत चाहिए
     आनंद ‘अकेला’ ने गांधी को कवितांजलि अर्पित करते हुए कहा- क्या तुम्हें लंगोटीधारी उघरे तन गांधी और लंगोटीधारी गंवई में अंतर नज़र आया/
क्रान्ति जबलपुरी ने शे’र पढ़ा- तेरी दहशत गिरी के नाम ये त्योहार लिख देंगे/ कहीं गोली कहीं बारूद की बौछार लिख देंगे
पूरन सिंह राजपूत ने ग़ज़ल पढी – डूबकर ह़ी मर गया मैं क्या समझता बात को / बोलती आँखें रहीं उसकी इशारों की तरह
युवा शायर अबरार अहमद ने शे’र पढ़ा- सब मकान मिट्टी के और मौसमे बारिश/ इसलिए डरा-सहमा हर मकान रहता है
अनिल जैन अनिल ने कहा- ईमां ख़ुलूस दिल से जुदा हो गया है आज/ हर आदमी देखिये क्या हो गया है आज    
संस्था की सचिव निरंजना जैन ने व्यंग्य रचना पढ़ते हुए कहा- महाजन ने माँगा ब्याज/ प्रति सैंकड़ा सिर्फ एक किलो प्याज
वरिष्ठ कवि निर्मल चंद ‘निर्मल’ ने कविता पढी- आशाओं के द्वार बंद कर दिए समय ने/ अंधियारा है /दीपक का भी साथ नहीं है/ चहल-पहल कोलाहल जाने किसका है/ अपना सा दिखता कोई भी हाथ नहीं है