हिन्दी-उर्दू मजलिस का मुखपत्र

जून माह के अंत तक प्राप्त चयनित रचनाएं पत्रिका 'परिधि' में प्रकाशित की जाती हैं. लेखक को एक लेखकीय प्रति नि:शुल्क प्रेषित की जाती है.
मंगल फॉण्ट में टाइप रचनाएं (चयनित) ब्लॉग पर भी प्रकाशित होंगी. ब्लॉग पर प्रकाशनार्थ रचना कभी भी भेजी जा सकती है
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Sunday, July 3, 2011

दिनांक ०१/जुलाई २०११


सागर- नगर की साहित्यिक संस्था 'हिंदी- उर्दू मजलिस' की 297 वीं गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में संपन्न हुई . गोष्ठी की अध्यक्षता श्री लक्ष्मी चन्द जैन ने की एवं सञ्चालन श्री पूरन सिह राजपूत ने किया.

राम आसरे पाण्डे ने रचना पाठ करते हुए कहा- वो हमको रौशनी देगा, बताओ मानलें कैसे? की जिसको देखने के वास्ते दीपक जलाना है //
पूरन सिंह राजपूत ने शेर पढ़ा- कह दिया तो मान जाओगे बुरा/ तुम हमारा मुंह न खुलवाया करो//
डॉ0 अनिल जैन ने ग़ज़ल का मतला पढ़ते हुए कहा- सुब्ह को चलती हवा की ताज़गी हैं लडकियाँ / चहचहाती बुलबुलों के गीत सी है लडकियाँ//
ऋषभ समैया 'जलज' ने रचना पढी- अपनेपन की हवा रौशनी, अंगनाई सा घर/ पूँछ , परख, थिरकन रिश्तों की पहुनाई सा घर //
श्री मोती लाल जैन ने प्रकाश काम्बले की कविता 'घर मात्र दीवारों से नहीं बनते' का पाठ किया .

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