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Tuesday, July 19, 2011

वृन्दावन राय 'सरल'

हमारे ज़र्फ़ का ये इम्तेहान होना है
ज़मीं के साथ हमें आसमान होना है
खुदा ने जो भी दिया उसका  एहतराम करो
अगर सुकून से हर रात तुम को सोना है
वफ़ा, ख़ुलूस से पहले करो ज़मीं ताज़ा
अगर चमन में जो अम्नो अमान बोना है 
सभी हैं शाख के पत्ते यहाँ हरे-पीले
समय के साथ हवाओं में जिनको खोना है
तमाम ज़ख़्म जो बख्शे हैं हमको दुनिया ने
हमें ये दाग़ फ़क़त आँसुओं से धोना है
दह्र से नाम अँधेरे का मिटाने को 'सरल'
हमें चिराग़ नहीं, आफ़ताब होना है  

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