सागर- नगर की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था हिंदी उर्दू मजलिस की 300 वीं रचना-पाठ गोष्ठी संस्था के बड़ा बाज़ार स्थित कार्यालय में १७/०८/२०११ दिन बुधवार को संपन्न हुई / गोष्ठी की अध्यक्षता श्रीमान सेठ मोतीलाल जी जैन ने की एवं संचालन श्रीमान रिषभ समैया 'जलज'ने किया/
श्रीमती निरंजना जैन ने 'नटनी' कहानी के वाचन के पूर्व अन्ना हजारे के आन्दोलन को अपनी सहमती जताते हुए रचना पढी- 'अन्ना हजारे ने / दिखला दिया ज़माने को/ कम मत आँको / आदमी के / आत्मविश्वास , लगन ,ईमानदारी ,सेवा और समर्पण को'
डा० अनिल जैन'अनिल' ने ग़ज़ल का शेर पढ़ते हुए कहा- करें अब यकीं हम यहाँ किस पे यारो / जिसे ताज सौंपो वही लूटता है// हैं दोनों ही हाथों में लड्डू किसी के/ यहाँ जिसको पकड़ो वही छूटता है //
विक्रांत जैन एडव्होकेट ने अन्ना हजारे को समर्पित दो आलेख 'अन्ना की लोकशाही- सरकार का अलोकतंत्र' एवं 'लोकपाल पर महाभारत' का वाचन किया .
रिषभ समैया 'जलज' ने रचना-पाठ करते हुए कहा- पावक को हम पानी कैसे कह देते/ ज्वाला को बर्फानी कैसे कह् देते.
वरिष्ठ कवि निर्मल चाँद 'निर्मल' ने दोहा पढ़ते हुए कहा - सत्य अहिंसा शब्द को, छलता है व्यवहार / टकसाली अब हो गए, पग-पग लोकाचार//
विनोद अनुरागी ने रचना पढी- रोटियां गरीब की, छीन कर कागा उड़ा / देखते सब रह गए , आँख पर चश्मा चढ़ा //
गोष्ठी के अध्यक्षता कर रहे सेठ मोतीलाल जी दाऊ ने सभी साहित्यकारों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए साधुवाद दिया
श्री लक्ष्मीचंद जैन एडव्होकेट ने सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की
अंत में रचना कर्मी श्रीमती राजमती दिवाकर और श्रीमान पुरषोत्तम सरवैया 'पारस' के आकस्मिक निधन पर दो मिनिट का मौन रखकर श्रृद्धांजलि अर्पित की गई /
श्रीमती निरंजना जैन ने 'नटनी' कहानी के वाचन के पूर्व अन्ना हजारे के आन्दोलन को अपनी सहमती जताते हुए रचना पढी- 'अन्ना हजारे ने / दिखला दिया ज़माने को/ कम मत आँको / आदमी के / आत्मविश्वास , लगन ,ईमानदारी ,सेवा और समर्पण को'
डा० अनिल जैन'अनिल' ने ग़ज़ल का शेर पढ़ते हुए कहा- करें अब यकीं हम यहाँ किस पे यारो / जिसे ताज सौंपो वही लूटता है// हैं दोनों ही हाथों में लड्डू किसी के/ यहाँ जिसको पकड़ो वही छूटता है //
विक्रांत जैन एडव्होकेट ने अन्ना हजारे को समर्पित दो आलेख 'अन्ना की लोकशाही- सरकार का अलोकतंत्र' एवं 'लोकपाल पर महाभारत' का वाचन किया .
रिषभ समैया 'जलज' ने रचना-पाठ करते हुए कहा- पावक को हम पानी कैसे कह देते/ ज्वाला को बर्फानी कैसे कह् देते.
वरिष्ठ कवि निर्मल चाँद 'निर्मल' ने दोहा पढ़ते हुए कहा - सत्य अहिंसा शब्द को, छलता है व्यवहार / टकसाली अब हो गए, पग-पग लोकाचार//
विनोद अनुरागी ने रचना पढी- रोटियां गरीब की, छीन कर कागा उड़ा / देखते सब रह गए , आँख पर चश्मा चढ़ा //
गोष्ठी के अध्यक्षता कर रहे सेठ मोतीलाल जी दाऊ ने सभी साहित्यकारों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए साधुवाद दिया
श्री लक्ष्मीचंद जैन एडव्होकेट ने सभी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की
अंत में रचना कर्मी श्रीमती राजमती दिवाकर और श्रीमान पुरषोत्तम सरवैया 'पारस' के आकस्मिक निधन पर दो मिनिट का मौन रखकर श्रृद्धांजलि अर्पित की गई /
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