हिन्दी-उर्दू मजलिस का मुखपत्र

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Sunday, February 27, 2011

Ghazlen


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ज्वालामुखी तो चुप है ,  लावा उबल रहा है.
ऊपर  है  राख  अंदर,  अंगार  जल  रहा  है.

अब और इसको छेड़ा बन जायेगा ये शोला .
जो  दर्द    आदमी   के   सीने   पल  रहा   है.

पड़ने  से  किरकिरी के  आंसू निकल  पड़े थे .
मैं  ये  समझ  रहा  थापत्थर पिघल रहा है.

जर्रे  की  कोशिशों  को जी भर के दाद दीजे.
वो आसमान छूने  कितना ,  उछल  रहा है .

वैसे तो क़द ‘अनिल’ काकुछ कम नहीं है उस पर,
कुछ  बोझ  है ज़ियादा,  झुक कर  वो  चल रहा  है. 

२.
ज़हन से होकर जब इक आंधी  गुज़रती है .
तब ग़ज़ल या नज़्म कागज़ पर उतरती है.

बैठे-बैठे    सब   नज़ारा   देख   लेता      हूँ .
इस सड़क  से रोज़ इक  दुनिया गुज़रती है
.
हाथ   रख कर हाथ पर  बैठे हुए   हो क्यों .
कामचोरी  से  कभी  किस्मत  संवरती है.

खुद ब खुद फन की खबर हो जाती है सब को.
जिस  तरह  से  फूल  की  खुशबू  बिखरती है.

अस्ल  सोने  की  यही  तासीर   देखी    है.
आँच  पाकर   और   भी   सूरत  निखरती है.
  
   डॉ०अनिल कुमार जैन 

 खबर बनती है
क़त्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने लुटाने पे खबर बनती है

कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलने पे खबर बनती है

नाचने वाले बहुत मिले हैं इस दुनिया में
अब तो दुनिया को नचाने पे खबर बनती है

बात ईमां की करोगे तो , रहोगे गुमनाम
आज तो जेल में जाने पे खबर बनती है

कुछ नहीं होगा , बसाओगे जो उजड़े घर को
आग बस्ती में लगाने पे खबर बनती है

भूख से रोता है बच्चा तो उसे रोने दे
दूध पत्थर को पिलाने पे खबर बनती है

कितना नादाँ है अनिल उसको ये मालूम नहीं
आग पानी में लगाने पे खबर बनती है
.....................
डॉ० अनिल कुमार जैन
(तरंग , नव-दुनिया २१ मार्च २०१० )
   

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