हिन्दी-उर्दू मजलिस का मुखपत्र

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Sunday, February 27, 2011

Dohe


दोहे
धागा लेकर भाव का, गूंथे शब्द विचार .
गांठ कल्पना की लगा ,बना लिया है हार .
पेट पीठ से लग गया , आँखों में हैं प्रान
ऐसे में कैसे रहे , पाप पुन्य का ध्यान.
किसने मुझको क्या दिया , सबका रखूँ हिसाब.
मैंने किसको क्या दिया , इस का नहीं जवाब .
मर्यादा को तोड़ कर , जब कर डाली भूल.
माथे पर चढने लगी, तब पैरों की धूल.
मैली चादर ओढ़ कर , सर पर बांधी पाग .
बैठे बैठे गिन रहे , इक दूजे के दाग .
ज्यों का त्यों कैसे रखे , कोई अपना रूप .
मुठ्ठी भर छाया यहाँ , आसमान भर धूप.
भरे हुए खलिहान में , लगी हुयी है आग .
उसे बुझाने की जगह , लोग रहे हैं भाग .
बोली अपनी भूल कर , सभी हो गए मूक .
चला शिकारी हाथ में , लेकर जब बन्दूक .
सम्बन्धों पर जब चढा ,खुदगर्जी का रंग .
 पौधा सूखा प्रेम का , मुरझाये सब अंग .
खुशिओं का बाज़ार है , पर ऊंचे हैं दाम .
भाव  ताव में हो गयी , इस जीवन की शाम
हम से तो बच्चे भले , हैं आँखों के नूर .
छुपते माँ  की गोद में , दुःख हो जाते दूर .
कुदरत ने क्या खूब दी , बच्चों को सौगात .
फूलों सा चहरा दिया , दी फूलों सी बात. 

अनिल कुमार जैन 

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